The Mahagauri Aarti is a devotional hymn dedicated to Goddess Mahagauri, one of the nine forms of Goddess Durga. It praises her divine attributes, invoking her blessings for prosperity, peace, and happiness. The Aarti highlights her role in cleansing devotees of sins and bestowing them with success. Mahagauri is worshipped during the Navratri.
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Among the Navadurga incarnations of the Hindu mother goddess Mahadevi, Mahagauri is her eighth form. On the eighth day of Navaratri, she is worshipped. According to Hinduism, Mahagauri has the ability to grant all of her followers' wishes. Anyone who pays homage to the goddess is freed from all human sorrow.
Mahagauri Devi | महागौरी
Mahagauri is frequently portrayed as having four hands, three of which are wielding tridents and drums, and the fourth is making a blessing motion. She is typically seen riding a white bull while dressed in white. She is one of the deities of peace.
The goddess Mahagauri is very fair, as her name suggests. Goddess Mahagauri is compared to the conch, the moon, and the white flower of Kunda because of her pale skin. She only wears white clothing, and as a result, she is sometimes referred to as Shwetambardhara .
ॐ देवी महागौर्यै नमः॥
Om Devi Mahagauryai Namah॥
जय महागौरी जगत की माया। जय उमा भवानी जय महामाया॥
हरिद्वार कनखल के पासा। महागौरी तेरा वहा निवास॥
चन्द्रकली और ममता अम्बे। जय शक्ति जय जय माँ जगदम्बे॥
भीमा देवी विमला माता। कौशिक देवी जग विख्यता॥
हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा। महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा॥
सती (सत) हवन कुंड में था जलाया। उसी धुएं ने रूप काली बनाया॥
बना धर्म सिंह जो सवारी में आया। तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया॥
तभी माँ ने महागौरी नाम पाया। शरण आनेवाले का संकट मिटाया॥
शनिवार को तेरी पूजा जो करता। माँ बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता॥
भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो। महागौरी माँ तेरी हरदम ही जय हो॥
Jay Mahagauri Jagat Ki Maya । Jay Uma Bhavani Jay Mahamaya॥
Haridwar Kankhal ke pasa। Mahagauri tera vaha nivaasa॥
Chandrakali aur Mamta Ambe। Jai Shakti Jai Jai Maa Jagdamba॥
Bheema Devi Vimala Mata। Kaushik Devi Jag vikhyata॥
Himachal ke ghar Gauri roop tera। Mahakali Durga hai swaroop tera॥
Sati (Sat) havan kund me tha jalaya। Usi dhuen ne roop Kali banaya॥
Bana dharm sinh jo sawari me aaya। To Shankar ne trishul apna dikhaya॥
Tabhi Maa ne Mahagauri naam paya। Sharan anevale ka sankat mitaya॥
Shanivaar ko teri puja jo karta। Maa bigda hua kaam uska sudharta॥
Bhakt bolo toh soch tum kya rahe ho। Mahagauri Maa teri hardam hi jai ho॥
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सर्वसङ्कट हन्त्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदायनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यमङ्गल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददम् चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
Sarvasankata Hantri Tvamhi Dhana Aishwarya Pradayanim।
Jnanada Chaturvedamayi Mahagauri Pranamamyaham॥
Sukha Shantidatri Dhana Dhanya Pradayanim।
Damaruvadya Priya Adya Mahagauri Pranamamyaham॥
Trailokyamangala Tvamhi Tapatraya Harinim।
Vadadam Chaitanyamayi Mahagauri Pranamamyaham॥
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वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चतुर्भुजा महागौरी यशस्विनीम्॥
पूर्णन्दु निभाम् गौरी सोमचक्रस्थिताम् अष्टमम् महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् त्रैलोक्य मोहनम्।
कमनीयां लावण्यां मृणालां चन्दन गन्धलिप्ताम्॥
Vande Vanchhita Kamarthe Chandrardhakritashekharam।
Simharudha Chaturbhuja Mahagauri Yashasvinim॥
Purnandu Nibham Gauri Somachakrasthitam Ashtamam Mahagauri Trinetram।
Varabhitikaram Trishula Damarudharam Mahagauri Bhajem॥
Patambara Paridhanam Mriduhasya Nanalankara Bhushitam।
Manjira, Hara, Keyura, Kinkini, Ratnakundala Manditam॥
Praphulla Vandana Pallavadharam Kanta Kapolam Trailokya Mohanam।
Kamaniyam Lavanyam Mrinalam Chandana Gandhaliptam॥
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ॐकारः पातु शीर्षो माँ, हीं बीजम् माँ, हृदयो।
क्लीं बीजम् सदापातु नभो गृहो च पादयो॥
ललाटम् कर्णो हुं बीजम् पातु महागौरी माँ नेत्रम् घ्राणो।
कपोत चिबुको फट् पातु स्वाहा माँ सर्ववदनो॥
Omkarah Patu Shirsho Maa, Him Bijam Maa, Hridayo।
Klim Bijam Sadapatu Nabho Griho Cha Padayo॥
Lalatam Karno Hum Bijam Patu Mahagauri Maa Netram Ghrano।
Kapota Chibuko Phat Patu Swaha Maa Sarvavadano॥
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श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥
Shwete Vrishesamarudha Shwetambaradhara Shuchih।
Mahagauri Shubham Dadyanmahadeva Pramodada॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
Ya Devi Sarvabhuteshu Maa Mahagauri Rupena Samsthita।
Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namah॥
माँ महागौरी ने भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की। भोलेनाथ ने उन्हें देखकर एक टिप्पणी की, जिससे पार्वती को आहति महसूस हुई और वह तपस्या में लीन हो गई। जब वषों तक तपस्या करने पर पार्वती नहीं आई, तो शिव उन्हें ढूंढ़ने चले जाते हैं और उन्हें देखकर हैरान रह जाते हैं। पार्वती जी का वर्ण बहुत प्रकाशमय होता है, उनकी छाती गोरी और चाँदनी के समान श्वेत, और वस्त्र-आभूषण से उन्हें प्रसन्नता मिलती है। इसीलिए, देवी उमा को उनके वर्ण की वरदान दिया जाता है।
माता पार्वती ने अपनी तपस्या के दौरान केवल कंदमूल फल और पत्तों का आहार लिया। बाद में वे सिर्फ वायु का सेवन करके तपस्या करने लगीं। उनकी तपस्या से उन्हें महान गौरव मिला और उनका नाम महागौरी पड़ा। भगवान शिव ने माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें गंगा में स्नान करने के लिए कहा। जब माता पार्वती गंगा में स्नान करने गईं, तो देवी का एक श्याम वर्ण संग किया हुआ स्वरूप प्रकट हुआ, जिसे कौशिकी कहा गया, और एक उज्ज्वल चंद्र जैसा स्वरूप प्रकट हुआ, जिसे महागौरी कहा गया।
महागौरी के अनुसार, यह मां के सफेद रंग वाले वर्ण वाली होती हैं और उनके वस्त्र और आभूषण भी सफेद रंग के ही होते हैं। मां का वाहन बैल होता है जो भगवान शिव का भी वाहन होता है। मां का दाहिना हाथ अभयमुद्रा में होता है और नीचे वाले हाथ में दुर्गा शक्ति का प्रतीक त्रिशुल होता है। मां के ऊपर वाले हाथ में शिव का प्रतीक डमरू होता है जो उन्हें शिवा के नाम से भी जाना जाता है। मां का नीचे वाला हाथ वरमुद्रा में अपने भक्तों को अभय देता है और मां शांत मुद्रा में दृष्टिगत होती है। देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण कहते हैं-
"सर्वमंगल मंगल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते।।"
अष्टमी तिथि पर महागौरी की पूजा बाकी दिनों की तरह होती है। शास्त्रीय रूप से अष्टमी तिथि को माता की पूजा की जाती है, ठीक उसी तरह सप्तमी तिथि को भी माता की पूजा की जाती है। इस दिन माता को लाल चुनरी चढ़ाकर मंत्र ओम देवी महागौर्यै नम: का जप करें। पहले लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाना चाहिए. फिर महागौरी की मूर्ति या तस्वीर को रखकर उसे स्थापित करना चाहिए। मां की कांति सौंदर्य देने वाली मानी जाती है। विधिवत पूजन करने के बाद, हाथ में सफेद फूल लेकर मां को देखें। रात की रानी को फूल बहुत पसंद हैं।
भक्तों को माँ महागौरी का ध्यान, स्मरण और पूजन बहुत लाभदायक है। इनका हमेशा ध्यान रखना चाहिए। इनकी कृपा से अद्भुत सिद्धियाँ मिलती हैं। मानव को अपने मन को अनन्य भाव से एकनिष्ठ करते हुए इनके ही पादारविन्दों पर निरंतर ध्यान देना चाहिए। भक्तों का दर्द मां महागौरी अवश्य दूर करती है। इसकी उपासना करने से अर्तजनों के असंभव काम भी हो सकते हैं। इसलिए इससे बचने के लिए हमें हर संभव प्रयास करना चाहिए। महागौरी को पूजना सभी नौ देवियों को खुश करता है।
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