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Ganapati Atharvashirsha, also known as Ganapati Upanishad, is a Sanskrit text and a minor Upanishad of Hinduism. It is dedicated to Lord Ganesha, the deity representing intellect and learning. The text comes from the Atharva Veda, one of the four Vedas, and is considered the most important text on Lord Ganesha. The term "Atharva" stands for firmness and oneness of purpose, while "shIrSha" means intellect directed towards liberation. The Ganapati Atharvashirsha can be recited at the beginning of any important work to maintain a clear mind and a calm demeanor.
श्री गणेशाय नम:'
ॐ भद्रं कर्णेभि शृणुयाम देवा:।
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्रा:।।
स्थिरै रंगै स्तुष्टुवां सहस्तनुभि::।
व्यशेम देवहितं यदायु:।1।
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा:।
स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:।
स्वस्ति न स्तार्क्ष्र्यो अरिष्ट नेमि:।।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।2।
ॐ शांति:। शांति:।। शांति:।।।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि।।
त्वमेव केवलं कर्त्ताऽसि।
त्वमेव केवलं धर्तासि।।
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि।
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।।
त्वं साक्षादत्मासि नित्यम्।
ऋतं वच्मि।। सत्यं वच्मि।।
अव त्वं मां।। अव वक्तारं।।
अव श्रोतारं। अवदातारं।।
अव धातारम अवानूचानमवशिष्यं।।
अव पश्चातात्।। अवं पुरस्तात्।।
अवोत्तरातात्।। अव दक्षिणात्तात्।।
अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।।
सर्वतो माँ पाहि-पाहि समंतात्।।3।।
त्वं वाङग्मयचस्त्वं चिन्मय।
त्वं वाङग्मयचस्त्वं ब्रह्ममय:।।
त्वं सच्चिदानंदा द्वितियोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।4।
सर्व जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्व जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्व जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।।
सर्व जगदिदं त्वयि प्रत्येति।।
त्वं भूमिरापोनलोऽनिलो नभ:।।
त्वं चत्वारिवाक्पदानी।।5।।
त्वं गुणयत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत: त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधार स्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्ति त्रयात्मक:।।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यम्।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वं इन्द्रस्त्वं अग्निस्त्वं।
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुव: स्वरोम्।।6।।
गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।।
अनुस्वार: परतर:।। अर्धेन्दुलसितं।।
तारेण ऋद्धं।। एतत्तव मनुस्वरूपं।।
गकार: पूर्व रूपं अकारो मध्यरूपं।
अनुस्वारश्चान्त्य रूपं।। बिन्दुरूत्तर रूपं।।
नाद: संधानं।। संहिता संधि: सैषा गणेश विद्या।।
गणक ऋषि: निचृद्रायत्रीछंद:।। गणपति देवता।।
ॐ गं गणपतये नम:।।7।।
एकदंताय विद्महे। वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नोदंती प्रचोद्यात।।
एकदंत चतुर्हस्तं पारामंकुशधारिणम्।।
रदं च वरदं च हस्तै र्विभ्राणं मूषक ध्वजम्।।
रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।।
रक्त गंधाऽनुलिप्तागं रक्तपुष्पै सुपूजितम्।।8।।
भक्तानुकंपिन देवं जगत्कारणम्च्युतम्।।
आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृतै: पुरुषात्परम।।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनांवर:।। 9।।
नमो व्रातपतये नमो गणपतये।। नम: प्रथमपत्तये।।
नमस्तेऽस्तु लंबोदारायैकदंताय विघ्ननाशिने शिव सुताय।
श्री वरदमूर्तये नमोनम:।।10।।
एतदथर्वशीर्ष योऽधीते।। स: ब्रह्मभूयाय कल्पते।।
स सर्वविघ्नैर्न बाध्यते स सर्वत: सुख मेधते।। 11।।
सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।।
सायं प्रात: प्रयुंजानो पापोद्भवति।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।।
धर्मार्थ काममोक्षं च विदंति।।12।।
इदमथर्वशीर्षम शिष्यायन देयम।।
यो यदि मोहाददास्यति स पापीयान भवति।।
सहस्त्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत।।13 ।।
अनेन गणपतिमभिषिंचति स वाग्मी भवति।।
चतुर्थत्यां मनश्रन्न जपति स विद्यावान् भवति।।
इत्यर्थर्वण वाक्यं।। ब्रह्माद्यारवरणं विद्यात् न विभेती कदाचनेति।।14।।
यो दूर्वां कुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति।।
यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति।। स: मेधावान भवति।।
यो मोदक सहस्त्रैण यजति।
स वांञ्छित फलम् वाप्नोति।।
य: साज्य समिभ्दर्भयजति, स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।15।।
अष्टो ब्राह्मणानां सम्यग्राहयित्वा सूर्यवर्चस्वी भवति।।
सूर्य गृहे महानद्यां प्रतिभासंनिधौ वा जपत्वा सिद्ध मंत्रोन् भवति।।
महाविघ्नात्प्रमुच्यते।। महादोषात्प्रमुच्यते।। महापापात् प्रमुच्यते।स सर्व विद्भवति स सर्वविद्भवति। य एवं वेद इत्युपनिषद।।16।।
om bhadram karnebhih’ shri’nuyaama devaa ।
bhadram pashyemaakshabhiryajatraah’ ॥
sthirairangaistusht’uvaamsastanoobhih’ ।
vyashema devahitam yadaayuh’ ॥
om svasti na indro vri’ddhashravaah’ ।
svasti nah’ pooshaa vishvavedaah’ ॥
svastinastaarkshyo arisht’anemih’ ।
svasti no bri’haspatirdadhaatu ॥
om tanmaamavatu tad vaktaaramavatu
avatu maam avatu vaktaaram
om shaantih’ । shaantih’ ॥ shaantih’॥।
॥ upanishat ॥
harih’ om namaste ganapataye ॥
tvameva pratyaksham tattvamasi ॥ tvameva kevalam kartaa’si ॥
tvameva kevalam dhartaa’si ॥ tvameva kevalam hartaa’si ॥
tvameva sarvam khalvidam brahmaasi ॥
tvam saakshaadaatmaa’si nityam ॥ 1 ॥
॥ svaroopa tattva ॥
ri’tam vachmi (vadishyaami) ॥ satyam vachmi (vadishyaami) ॥ 2 ॥
ava tvam maam ॥ ava vaktaaram ॥ ava shrotaaram ॥
ava daataaram ॥ ava dhaataaram ॥
avaanoochaanamava shishyam ॥
ava pashchaattaat ॥ ava purastaat ॥
avottaraattaat ॥ ava dakshinaattaat ॥
ava chordhvaattaat ॥ avaadharaattaat ॥
sarvato maam paahi paahi samantaat ॥ 3 ॥
tvam vaangmayastvam chinmayah’ ॥
tvamaanandamayastvam brahmamayah’ ॥
tvam sachchidaanandaadviteeyo’si ॥
tvam pratyaksham brahmaasi ॥
tvam jnyaanamayo vijnyaanamayo’si ॥ 4 ॥
sarvam jagadidam tvatto jaayate ॥
sarvam jagadidam tvattastisht’hati ॥
sarvam jagadidam tvayi layameshyati ॥
sarvam jagadidam tvayi pratyeti ॥
tvam chatvaari vaakpadaani ॥ 5 ॥
tvam gunatrayaateetah’ tvamavasthaatrayaateetah’ ॥
tvam dehatrayaateetah’ ॥ tvam kaalatrayaateetah’ ॥
tvam moolaadhaarasthito’si nityam ॥
tvam shaktitrayaatmakah’ ॥
tvaam yogino dhyaayanti nityam ॥
tvam brahmaa tvam vishnustvam rudrastvam
indrastvam agnistvam vaayustvam sooryastvam chandramaastvam
brahmabhoorbhuvah’svarom ॥ 6 ॥
॥ ganesha mantra ॥
ganaadim poorvamuchchaarya varnaadim tadanantaram ॥
anusvaarah’ paratarah’ ॥ ardhendulasitam ॥ taarena ri’ddham ॥
etattava manusvaroopam ॥ gakaarah’ poorvaroopam ॥
akaaro madhyamaroopam ॥ anusvaarashchaantyaroopam ॥
binduruttararoopam ॥ naadah’ sandhaanam ॥
samhitaasandhih’ ॥ saishaa ganeshavidyaa ॥
ganakari’shih’ ॥ nichri’dgaayatreechchhandah’ ॥
ganapatirdevataa ॥ om gam ganapataye namah’ ॥ 7 ॥
॥ ganesha gaayatree ॥
ekadantaaya vidmahe । vakratund’aaya dheemahi ॥
tanno dantih’ prachodayaat ॥ 8॥
॥ ganesha roopa ॥
ekadantam chaturhastam paashamankushadhaarinam ॥
radam cha varadam hastairbibhraanam mooshakadhvajam ॥
raktam lambodaram shoorpakarnakam raktavaasasam ॥
raktagandhaanuliptaangam raktapushpaih’ supoojitam ॥
bhaktaanukampinam devam jagatkaaranamachyutam ॥
aavirbhootam cha sri’sht’yaadau prakri’teh’ purushaatparam ॥
evam dhyaayati yo nityam sa yogee yoginaam varah’ ॥ 9 ॥
॥ asht’a naama ganapati ॥
namo vraatapataye । namo ganapataye । namah’ pramathapataye ।
namaste’stu lambodaraayaikadantaaya ।
vighnanaashine shivasutaaya । shreevaradamoortaye namo namah’ ॥ 10 ॥
॥ phalashruti ॥
etadatharvasheersham yo’dheete ॥ sa brahmabhooyaaya kalpate ॥
sa sarvatah’ sukhamedhate ॥ sa sarva vighnairnabaadhyate ॥
sa panchamahaapaapaatpramuchyate ॥
saayamadheeyaano divasakri’tam paapam naashayati ॥
praataradheeyaano raatrikri’tam paapam naashayati ॥
saayampraatah’ prayunjaano apaapo bhavati ॥
sarvatraadheeyaano’pavighno bhavati ॥
dharmaarthakaamamoksham cha vindati ॥
idamatharvasheershamashishyaaya na deyam ॥
yo yadi mohaaddaasyati sa paapeeyaan bhavati
sahasraavartanaat yam yam kaamamadheete
tam tamanena saadhayet ॥ 11 ॥
anena ganapatimabhishinchati sa vaagmee bhavati ॥
chaturthyaamanashnan japati sa vidyaavaan bhavati ।
sa yashovaan bhavati ॥
ityatharvanavaakyam ॥ brahmaadyaavaranam vidyaat
na bibheti kadaachaneti ॥ 12 ॥
yo doorvaankurairyajati sa vaishravanopamo bhavati ॥
yo laajairyajati sa yashovaan bhavati ॥
sa medhaavaan bhavati ॥
yo modakasahasrena yajati
sa vaanchhitaphalamavaapnoti ॥
yah’ saajyasamidbhiryajati
sa sarvam labhate sa sarvam labhate ॥ 13 ॥
asht’au braahmanaan samyaggraahayitvaa
sooryavarchasvee bhavati ॥
sooryagrahe mahaanadyaam pratimaasamnidhau
vaa japtvaa siddhamantro bhavati ॥
mahaavighnaatpramuchyate ॥ mahaadoshaatpramuchyate ॥
mahaapaapaat pramuchyate ॥
sa sarvavidbhavati sa sarvavidbhavati ॥
ya evam veda ityupanishat ॥ 14 ॥
॥ shaanti mantra ॥
om sahanaavavatu ॥ sahanaubhunaktu ॥
saha veeryam karavaavahai ॥
tejasvinaavadheetamastu maa vidvishaavahai ॥
om bhadram karnebhih’ shri’nuyaama devaa ।
bhadram pashyemaakshabhiryajatraah’ ॥
sthirairangaistusht’uvaamsastanoobhih’ ।
vyashema devahitam yadaayuh’ ॥
om svasti na indro vri’ddhashravaah’ ।
svasti nah’ pooshaa vishvavedaah’ ॥
svastinastaarkshyo arisht’anemih’ ।
svasti no bri’haspatirdadhaatu ॥
om shaantih’ । shaantih’ ॥ shaantih’ ॥।
॥ iti shreeganapatyatharvasheersham samaaptam ॥
श्री गणेशाय नमः।
ॐ नमस्ते गणपतये। त्वमेव प्रत्यक्षम तत्त्वमसि ।
त्वमेव केवलङ् कर्ताऽसि। त्वमेव केवलम धर्ताऽसि ।
त्वमेव केवलम् हर्ताऽसि। त्वमेव सर्वङ् खल्विदम् ब्रह्मासि ।
त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम् ।। १.
हे ! गणेशा आपको प्रणाम है, तुम ही सजीव प्रत्यक्ष रूप हो, तुम ही कर्म और तुम ही करता हो, तुम ही धारण करने वाले, और तुम ही हरण करने वाले संहारी हो। तुम में ही समस्त ब्रह्माण्ड व्याप्त हैं तुम्ही एक पवित्र साक्षी हो।
ऋतं वच्मि । सत्यं वच्मि ।। २.
मैं आज आपके समक्ष ज्ञान की बात कहता हूँ सच्चाई कहता हूँ।
अव त्वम् माम् । अव वक्तारम् ।
अव श्रोतारम् । अव दातारम् ।
अव धातारम् । अवानूचानमव शिष्यम् ।
अव पश्चात्तात् । अव पुरस्तात् ।
अवोत्तरात्तात् । अव दक्षिणात्तात् ।
अव चोध्र्वात्तात् । अवाधरात्तात् ।
सर्वतो माम् पाहि पाहि समन्तात् ।। ३.
आप मेरे हो और मेरी रक्षा करों, मेरी वाणी की रक्षा करो। मेरी बाणी को सुनने वालो की रक्षा करों। मुझे देने वाले की रक्षा करों मुझे धारण करने वाले की रक्षा करों। वेदों उपनिषदों एवम उसके वाचक की रक्षा करों साथ ही इन ज्ञान स्त्रोतों से ज्ञान लेने वाले शिष्यों की रक्षा करों। हे गणपति ! चारो दिशाओं पूर्व, पश्चिम, उत्तर, एवम दक्षिण से सम्पूर्ण रक्षा करों।
त्वं वाङ्मयस्त्वञ् चिन्मयः ।
त्वम् आनन्दमयस्त्वम् ब्रह्ममयः ।
त्वं सच्चिदानन्दाद्वितीयोऽसि ।
त्वम् प्रत्यक्षम् ब्रह्मासि ।
त्वम् ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ।। ४.
तुम वाम हो, तुम ही चिन्मय हो, तुम ही आनन्द ब्रह्म ज्ञानी हो, तुम ही सच्चिदानंद, अद्वितीय रूप हो , प्रत्यक्ष कर्ता हो तुम ही ब्रह्म हो, तुम ही ज्ञान विज्ञान के दाता हो।
सर्वञ् जगदिदन् त्वत्तो जायते ।
सर्वञ् जगदिदन् त्वत्तस्तिष्ठति ।
सर्वञ् जगदिदन् त्वयि लयमेष्यति ।
सर्वञ् जगदिदन् त्वयि प्रत्येति ।
त्वम् भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः ।
त्वञ् चत्वारि वाव्पदानि || ५.
हे गणपति ! इस जगत के जन्मदाता तुम ही हो,तुमने ही सम्पूर्ण विश्व को सुरक्षा प्रदान की हैं और सम्पूर्ण संसार तुम में ही निहित हैं पूरा विश्व तुम में ही दिखाई देता हैं तुम ही जल, भूमि, आकाश और वायु हो। तुम चारों दिशा में व्याप्त हो।
त्वङ् गुणत्रयातीतः। त्वम् अवस्थात्रयातीतः ।
त्वन् देहत्रयातीतः । त्वङ् कालत्रयातीतः ।
त्वम् मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम् ।
त्वं शक्तित्रयात्मकः । त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम् ।
त्वम् ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वम् रुद्रस्त्वम् इन्द्रस्त्वम् ।
अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वञ चन्द्रमास्त्वम्,
ब्रह्मभूर्भुवः स्वरोम्।। ६.
हे गणपति ! आप सत्व,रज,तम तीनो गुणों से भिन्न हो। तुम तीनों काल भूत, भविष्य और वर्तमान से भी भिन्न हो। तुम तीनों देहो से भिन्न हो। तुम जीवन के मूल आधार में विराजमान हो। तुम में ही तीनो शक्तियां धर्म, उत्साह, मानसिक व्याप्त हैं। योगि और महागुरु तुम्हारा ही ध्यान करते हैं | तुम ही ब्रह्म, विष्णु, रूद्र, इंद्र, अग्नि, वायु, सूर्य, चन्द्र हो | तुम मे ही गुणों सगुण, निर्गुण का समावेश हैं |
गणादिम् पूर्वमुच्चार्य, वर्णादिन् तदनन्तरम् ।
अनुस्वारः परतरः । अर्धेन्दुलसितम् ।
तारेण ऋद्धम् । एतत्तव मनुस्वरूपम् ।
गकारः पूर्वरूपम् । अकारो मध्यमरूपम् ।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपम् । बिन्दुरुत्तररूपम् ।
नादः सन्धानम् । संहिता सन्धिः ।
सैषा गणेशविद्या । गणक ऋषिः ।
निचृद्गायत्री छन्दः । गणपतिर्देवता ।
ॐ गँ गणपतये नमः ।। ७.
“गण” का उच्चारण करके बाद के आदिवर्ण अकार का उच्चारण करें | ओंकार का उच्चारण करे | यह पुरे मन्त्र ॐ गं गणपतये नम: का भक्ति से उच्चारण करें |
गणपति अथर्वशीर्ष श्लोक
एकदन्ताय विद्महे ।
वक्रतुण्डाय धीमहि ।
तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।। ८.
एकदंत, वक्रतुंड का हम ध्यान करते हैं | वह हमें इस सदमार्ग पर चलने की प्रेरणा दे।
एकदन्तञ् चतुर्हस्तम्, पाशमङ्कुशधारिणम् ।
रदञ् च वरदम् हस्तैर्बिभ्राणम्, मूषकध्वजम् ।
रक्तं लम्बोदरं, शूर्पकर्णकम् रक्तवाससम् ।
रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गम्, रक्तपुष्पैःसुपूजितम् ।
भक्तानुकम्पिनन् देवञ्, जगत्कारणमच्युतम् ।
आविर्भूतञ् च सृष्ट्यादौ, प्रकृतेः पुरुषात्परम् ।
एवन् ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः || ९.
भगवान गणेश एकदन्त और चार भुजाओं वाले हैं जिसमे वह पाश,अंकुश, दन्त, वर मुद्रा रखते हैं। उनके ध्वज पर मूषक हैं। बह लाल वस्त्र धारी हैं। चन्दन का लेप लगा हैं। लाल पुष्प धारण करते हैं, सभी की मनोकामना पूरी करने वाले जगत में सभी जगह व्याप्त हैं। श्रृष्टि के रचियता हैं और जो भी इनका ध्यान सच्चे ह्रदय से करे वो महा योगि हैं।
नमो व्रातपतये, नमो गणपतये,
नमः प्रमथपतये, नमस्ते अस्तु लम्बोदराय एकदन्ताय,
विघ्ननाशिने शिवसुताय, वरदमूर्तये नमः || १०.
व्रातपति, गणपति को प्रणाम, प्रथम पति को प्रणाम, एकदंत को प्रणाम, विध्नविनाशक, लम्बोदर, शिवतनय श्री वरद मूर्ती को प्रणाम।
एतदथर्वशीर्षं योऽधीते । स ब्रह्मभूयाय कल्पते ।
स सर्वविघ्नैर्न बाध्यते । स सर्वतः सुखमेधते ।
स पञ्चमहापापात् प्रमुच्यते ।
सायमधीयानो दिवसकृतम् पापन् नाशयति ।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतम् पापन् नाशयति ।
सायम् प्रातः प्रयुञ्जानोऽअपापो भवति ।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति ।
धर्मार्थकाममोक्षञ् च विन्दति ।
इदम् अथर्वशीर्षम् अशिष्याय न देयम् ।
यो यदि मोहाद्दास्यति स पापीयान् भवति ।
सहस्रावर्तनात् यं यङ् काममधीते,
तन् तमनेन साधयेत् ।। ११.
जो इस गणपति अथर्वशीष का पाठ करता हैं वह समस्त विघ्नों से दूर होता हैं। वह सदैव ही सुखी हो जाता हैं, वह पंच महापाप से दूर हो जाता हैं। सन्ध्या में पाठ करने से दिन के दोष दूर होते हैं और प्रातः पाठ करने से रात्रि के दोष दूर होते हैं। इसे नित्य पाठ करने वाला दोष रहित हो जाता हैं और साथ ही धर्म, अर्थ, काम एवँ मोक्ष पर विजयी को प्राप्त करता हैं। इसका 1 हजार बार पाठ करने से उपासक सिद्धि प्राप्त कर योगी बन जाएगा।
अनेन गणपतिमभिषिञ्चति ।
स वाग्मी भवति ।
चतुथ्र्यामनश्नन् जपति स विद्यावान् भवति ।
इत्यथर्वणवाक्यम् । ब्रह्माद्यावरणम् विद्यात् ।
न बिभेति कदाचनेति ।। १२.
जो इस अथर्वशीष मन्त्र के उच्चारण के साथ गणेश जी का अभिषेक करता हैं उसकी वाणी उसकी दास हो जाती हैं। जो चतुर्थी के दिन उपवास कर जप करता हैं, वह विद्वान व्यक्ति बनता हैं। जो ब्रह्मादि आवरण को जानता है वह भय व डर से मुक्त होता हैं।
यो दूर्वाङ्कुरैर्यजति । स वैश्रवणोपमो भवति ।
यो लाजैर्यजति, स यशोवान् भवति ।
स मेधावान् भवति । यो मोदकसहस्रेण यजति ।
स वाञ्छितफलमवाप्नोति ।
यः साज्यसमिद्भिर्यजति स सर्वं लभते, स सर्वं लभते ।। १३.
जो दुर्वकुरो द्वारा पूजन करता हैं वह कुबेर के समान बनता हैं। जो लाजा के द्वारा पूजन , पाठ करता हैं वह यशस्वी बनता हैं मेधावी बनता हैं और जो मोदको के साथ पूजा पाठ करता हैं वह मन: अनुसार फल प्राप्त करता हैं | जो घृतात्क समिधा के द्वारा हवन करता हैं वह सब कुछ प्राप्त करता हैं।
गणपति अथर्वशीर्ष श्लोक
अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा,
सूर्यवर्चस्वी भवति ।
सूर्यग्रहे महानद्याम् प्रतिमासन्निधौ
वा जप्त्वा, सिद्धमन्त्रो भवति ।
महाविघ्नात् प्रमुच्यते। महादोषात् प्रमुच्यते।
महापापात् प्रमुच्यते । स सर्वविद् भवति,
स सर्वविद् भवति । य एवम् वेद ।। १४.
जो आठ ब्राह्मणों को उपनिषद का ज्ञाता बनाता हैं वे स्वयं सूर्य के सामान तेजस्वी होते हैं। सूर्य ग्रहण के समय नदी के तट पर अथवा अपने इष्ट देव के समीप इस उपनिषद का पठन करे तो सिद्धी की प्राप्त होती हैं। जिससे जीवन की समस्त रूकावटे दूर होती हैं, पाप कटते हैं वह व्यक्ति विद्वान हो जाता हैं, यह ऐसी ब्रह्म विद्या हैं।
शान्तिमन्त्र
ॐ भद्रङ् कर्णेभिः शृणुयाम देवाः ।
भद्रम् पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः
व्यशेम देवहितं यदायुः ।। १५.
हे गणपति।! हमें ऐसा आशीर्वाद दें की ऐसे शब्द एवँ विचार हमारे कानो में पड़े जो हमें ज्ञान दे और निन्दा एवम दुराचार से दूरी बनाए रखे । हम सदैव समाज की सेवा में लगे रहे तथा अधर्म कार्यों से दूर रहकर हमेशा भगवान की भक्ति में लीन रहें । हमारे स्वास्थ्य पर हमेशा आपकी कृपा बनी रहे और हम भोग विलास से दूर रहें। हमारे तन मन धन में ईश्वर का वास हो जो हमें सदैव अच्छे मार्ग पर लेकर चले, हमें शुभ कर्मों का भागी बनाये। यही प्रार्थना हम आपसे करते हैं गणपति जी ।
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः ।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्ताक्ष्र्योऽअरिष्टनेमिः
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।। १६.
चारो दिशाओं में जिसकी कीर्ति व्याप्त हैं वह इंद्र देवता जो कि देवता गण के देव हैं उनके जैसे जिनकी ख्याति, प्रसिद्धि हैं जो बुद्धि का अपार सागर हैं जिनमे बृहस्पति देव के सामान शक्तियाँ हैं जिनके मार्गदर्शन से कर्म को दिशा मिलती हैं जिससे सम्पूर्ण मानव जाति का भला होता हैं ऐसे देवता को शाट शाट प्रणाम है।
This scripture, filled with deep spiritual insights, presents various aspects of Lord Ganesh.
Philosophy
Ganapati Atharvashirsha highlights the concept of 'non-dualism,' emphasizing that Lord Ganesh represents the supreme universal power.
Mantra
The scripture contains the 'Ganesh Gayatri Mantra,’ a potent hymn invoking Lord Ganesh for wisdom and guidance.
Spiritual Wisdom
The text provides unique ways to meditate on Lord Ganesh, aligning his divine qualities with the elements of the universe.
The Importance
Ganapati Atharvashirsha is valuable for human spirituality. Followers recite this scripture to pay respect to Lord Ganesh, who is regarded as the eliminator of obstacles & the giver of wisdom. This aids personal spiritual development and enlightenment.
The recitation of Ganapati Atharvashirsha plays a key role in Ganesh Chaturthi and other related rituals. It's traditionally read in a calm setting and often accompanied by paying offerings to Lord Ganesh.
Shiv Ji Ki Aarti | शिव आरती | Shri Shiv Chalisa | शिव चालीसा |
Parvati Chalisa | श्री पार्वती चालीसा | Ganesh Chalisa |
Ganesh Ji Ki Aarti | Ganesh Stotra |
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